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राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 : उच्च शिक्षा के क्षेत्र पर प्रभाव | Original Article

डॉ० एम० ए० खान*, डॉ० आबिदा ख़ातून, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

स्वस्थ ,सशक्त ,समृद्ध ,आत्मनिर्भर तथा श्रेष्ठ भारत के निर्माण की परिकल्पना के साथ राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 अस्तित्व में आ चुकी है। अब इस शिक्षा नीति को धरातल पर प्रभावी रूप से लागु किये जाने का समय है। स्वाभाविक है कि नवीन शिक्षा नीति का वृहद विवेचन होगा। यह भी परीक्षण होगा कि वास्तविकता के धरातल पर यह नीति कितनी व्यावहारिक है। प्रश्न यह उठता है कि 1968 ,1986 तथा 1992 की शिक्षा नीतियों से यह किस प्रकार भिन्न है ? यदि पूर्व कि शिक्षा नीतियाँ देश की आवशयकताओं व अपेक्षाओं को पूरा करने में असमर्थ रही हैं तो नवीन शिक्षा नीति में इसके लिये क्या प्रावधान किये गये हैं? नवीन शिक्षा नीति शिक्षा व्यवस्था के अत्यधिक केन्द्रीकरण , व्यवसायीकरण के साथ ही निजीकरण तथा शिक्षा के क्षेत्र में विदेशी भागीदारी का मार्ग प्रशस्त करती हुई दिखाई देती है। त्रिभाषा फार्मूला तथा केन्द्रीय स्तर पर विभिन्न नियामक संस्थाओं को मिलाकर एक संस्था बनाने जैसे प्रावधान समाधान के स्थान पर नवीन समस्याओं को जन्म देंगे , जिससे भारत के संघीय ढाँचे पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। इसी प्रकार स्नातक स्तर पर मल्टी लेवल एग्जिट व एन्ट्री की व्यवस्था तथा सी बी सी एस ( C B C S ) आदि को लागु किये जाने हेतु जिन आधारभूत संसाधनों की आवशयकता होगी उनकी व्यवस्था किये जाने की दिशा में सरकार के क्या प्रयास होंगे नवीन शिक्षा नीति में इसका उल्लेख नहीं मिलता है। विशेष बिन्दु यह है कि वर्तमान समय में देश की सम्पूर्ण शिक्षा व्यवस्था के 95 से अधिक भाग का संचालन निजी क्षेत्र के द्वारा किया जा रहा है। वर्तमान सरकार शेष शिक्षण संस्थाओं को भी निजी क्षेत्र को दिये जाने की योजना पर कार्य कर रही है। इसके पक्ष में कठिन अर्थोपाय का तर्क तो समझ में आता है परन्तु राज्य के दायित्व के निर्वहन को ताक पर रखकर ईज़ ऑफ़ डूइंग के सिद्धांत के आधार पर निजी शिक्षण संस्थानों को खुली छूट दिया जाना तर्क से परे की बात है। प्रस्तुत शोध पत्र में इन सभी बिन्दुओं का विस्तार से विश्लेषण किया जायेगा।