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योग साधना का आधार “कर्म योग” | Original Article

Mamta Sharma*, Manju Bora, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

योग भारतीय जीवन पद्वति का एक महत्वपूर्ण अंग है। सृष्टि के आदिकाल से ही भारत के महान साधक गण इस सनानत साधना का युगों-युगों से अखण्ड रूप से अभ्यास करते आ रहे है योग की साधना का उपयोग जितना एक सन्यासी के लिए उपयोगी है। उतना ही गृहस्थों के लिए भी यह एक ऐसा विज्ञान है जो मनुष्य के ना सिर्फ सामाजिक व व्यक्तिगत जीवन को सुन्दर और सुखमय बनता है। वरन् मोक्ष रूपी परम लक्ष्य की प्राप्ति कराता है। जीवन में पूर्णता प्राप्ति के लिए हमारे पूर्व मनिषियों ने तीन मार्ग बताये है। ज्ञानयोग, भक्तियोग, और कर्म योग। ज्ञानयोग, उच्च बौद्विक चेतना सम्पन्न सूक्ष्मदर्शी, चिन्तन प्रधान भाव अर्जन करने की प्रेरणा देता है और भक्ति योग में हृदय की शुद्धि आत्मसमर्पण की उत्कट भावना, अनन्य प्रेम को आवश्यक बताया गया है किन्तु कर्म योग का समावेश इन दोनो के साथ अनिवार्य माना गया है। आज के संर्घषमय युग में तो कर्म योग “युगधर्म” कहा जाय तो कोई अत्युक्ति न होगी क्योंकि इसकी साधना, आचरण, सफलता से किए जा सकते है।कर्म योग साधना एक ऐसा मार्ग है जिससे लौकिक और पारलौकिक देानेा पक्षो का उत्थान होता है। इस साधना के लिए सन्यास लेने या कही वन में जाकर रहने की आवश्यकता नही है बल्कि गृहस्थ में रहते हुए भी प्रत्येक मनुष्य कर्मयोग का साधक हो सकता है और फल की इच्छा को त्यागकर कर्म करता हुआ भी मुक्ति को प्राप्त कर सकता है।