भारतीय वाङ्मय मे प्राण और उसका वैज्ञानिक विवेचना – एक अध्ययन | Original Article
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड प्राण में ही टिका हुआ है प्राण के जाते ही इस ब्रह्माण्ड में सब जीव निर्जीव हो जायेंगे, इस धरती पर जितने भी कीट, पतंगे, सभी वृक्ष, जीव-जन्तु आदि सब प्राण वायु का सेवन करते हैं और सभी में प्राण उपस्थित हैं, जहाँ तक की वाहन, कुकर, दीपक, गैस और सभी इंजन आदि मशीनों में भी प्राण होते हैं, अर्थात् वायु होती है, ये सभी भी अपान वायु छोड़ती है, जैसे जब कुकर अग्नि से प्राण रूपी अग्नि लेता है, तो उसे कूकर की सीटी के रूप में अपान वायु छोड़ता है। इसी प्रकार सभी इंजन और मशीनें जब चलती हैं, तो उन सभी में उनकी उल्टी हवा, गर्मी फेंकने का भी साधन होता है, अर्थात् अपान वायु का साधन होता है। जैसे यदि हमने दीपक जलाया, और यदि उसे पूरी तरह ढक लेंगे तो वह बुझ जायेगा, यदि उसे थोड़ी वायु मिलती रहती है, तो वह जलता रहेगा। इस प्रकार प्राण वायु की सभी को आवश्यकता होती है। प्राण शब्द प्र उपसर्ग पूर्वक अन् धातु से घञ् प्रत्यय लगा कर बना है। सर मोनियर विलियम्स ने इसका अर्थ The birth of life, breath, respiration, pirit, vitality इत्यादि किया है।’ प्राण का अर्थ एवं महत्त्व पाँच तत्त्वों में से एक मुख्य तत्त्व वायु हमारे शरीर को जीवित रखती है और वात के रूप में शरीर के तीन दोषों में से एक दोष है, जो श्वास के रूप में हमारा प्राण है।