हरियाणा ग्रामीण विकास नीति का आधार ग्राम पंचायतें एक सैद्धांतिक दृष्टिकोण | Original Article
ग्रामीण विकास का अभिप्राय गांवों के संपूर्ण विकास से होता है। सभी ग्रामवासियों को शिक्षा, कृषि,सफाई, आवास, स्वास्थ्य, रोजगार के पर्याप्त साधन एवं अवसर उपलब्ध कराए जाएं तथा शैक्षिक व आर्थिक अवसरों के साथ-साथ सामाजिक न्याय को भी समाज के विकास का अभिन्न हिस्सा माना जाए। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद गांवों का विकास तो हुआ, लेकिन विकास की रफ्तार धीमी रही है। ग्रामीण स्तर पर विकास का आधार ग्राम पंचायतों को माना गया है। अतः पंचायती राज संस्थाओं की कार्यप्रणाली को ज्यादा सक्षम, पारदर्शी, शासन का आधार और तीव्र बनाने के लिए यह आवश्यक है कि गांव के स्तर पर आर्थिक कार्यकलापों से जुड़ा कौशल विकास प्रशिक्षण, कृषि संसाधन, कृषि सेवाएं, स्वास्थ्य सुविधाएं, स्कूली शिक्षा, स्वच्छता, जलापूर्ति, कचरा प्रबंधन, गलियां और नालियां, स्ट्रीट लाइट, गांवो के बीच सड़क संपर्क, सार्वजनिक परिवहन, एलपीजी गैस कनेक्शन, नागरिक सेवा केंद्र-जनकेंद्रित सेवाओं, ई-ग्राम कनेक्टिविटी, इलेक्ट्रीसिटी व्यवस्था आदि सभी ग्रामीण आधारभुत आवश्यकताओं पर नीति निर्माण का कार्य पंचायतों के माध्यम से हो। जिससे गाँव में ‘स्मार्ट स्कूल’ हों, सबको चिकित्सा सुविधा उपलब्ध हो, पक्के घर हों, सभी के लिए आधार कार्ड, ई-गवर्नेंसइस एंव गांव में हर परिवार को गरीबी से बाहर निकालने पर मुख्य जोर हो। हर घर में शौचालय होगा, स्वच्छता होगी। बिजली, पानी, सड़क और ब्राडबैंड हो। नशाखोरी और महिलाओं के साथ भेदभाव जैसी सामाजिक कुरीतियों के उन्मूलन का प्रयास किया जाएगा और प्रदेश के सभी गांव आदर्श गांव होंगे। प्रस्तुत शौघ पत्र द्वितीयक स्त्रोत पर आधारित है। जिसका मुख्य उद्देश्य ग्राम स्तर पर नीति निर्माण में ग्राम पंचायत के महत्व को इंगित करना और विद्यार्थी एंव शोद्यार्थीयों को जागरूक करना व शोध के लिए प्ररेरित करना है। क्योंकि हर गांव, जिले एंव राज्य की अलग-अलग समस्याएं एंव क्षेत्रीय भिन्नताएं होती है।