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गजानन माधव मुक्तिबोध का काव्य शिल्प - फैटेसी के रूप में | Original Article

Manju .*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

गजानन माधव मुक्तिबोध का जन्म ग्वालियर राज्य के एक कस्बे में 14 नवम्बर 1917 ई (श्योपुर, जिला मुरैना) को हुआ था। इन्होंने छात्र जीवन से ही लेखन कार्य आरम्भ कर दिया था। 1938 में इन्दौर में अपनी बुआ के यहां रहते हुए उन्होंने शान्ता बाई नामक पड़ोस की एक युवती से प्रेम विवाह किया। मुक्तिबोध हिन्दी कविता को सर्वथा नवीन दिशा की ओर ले जाने वाले साम्यवादी विचारधारा करके चलने वाले, तेजस्वी विचारक तथा औपचारिकताओं से सदा दूर हरने वाले और अभावों से जूझने वाले प्रयोगवादी कवि थे। मुक्तिबोध की रचनाओं में काव्य-ग्रंथ ‘चांद का मुंह टेढ़ा है’ प्रसिद्ध है। इनके अन्य ग्रंथों में एक साहित्यिक की डायरी कामायनी एक पुनर्विचार नई कविता का आत्मसंघर्ष ‘भारत इतिहास और संस्कृति’ नामक ग्रंथ प्रमुख है। मुक्तिबोध के समस्य काव्य मूल्यों के मूल में यह अन्तः संघर्ष किसी न किसी रूप से अवस्थित है। यह कभी समज्ञपत नही होता बल्कि व्यक्तित्व का सामाजिक अन्तविर्रोध तथा विसंगतियों से बराबर संघर्ष जारी रहता है। वे मानते हैं कि आज कवि को तीन क्षेत्रों में संघर्ष करना पड़ता है। 1. तत्व के लिए 2. अभिव्यक्ति को सक्षम बनाने के लिए 3. दृष्टि विकास के लिए यही कारण है कि इनकी बहुत सी कविताओं में नवीन परिस्थितियों से पैदा हुई मन स्थितियों का प्रभावशाली ढंग से चित्रण हुआ है। इनकी कविता का उद्धरण द्रष्टव्य है। ‘‘वह परस्पर की मृदुल पहचान जैसे अतल गर्भा भव्य धरती हृदय की निज कूल पर मृद स्पर्श कर पहचान करती, गूढ़तम उस विशद दीर्घछाय श्यामल काय बरगद वृक्ष की जिसके तले आश्रित अनेको प्राण इनकी एक कविता ‘‘एक भूतपूर्व विद्रोही का आत्मकथन से लिया गया उदाहरण भी दखें। ‘‘खूबसूरत कमरों में कई बार हमारी आंखों के सामनेहमारे विद्रोह के बावजूद बलात्कार किये गयेनक्षीदार कक्षों में दबले-पिघलते हुए एक भाप बन गये।’’