भारत में प्राथमिक शिक्षा से सम्बंधित मुददों एवं शिक्षा के आधार का अध्धयन | Original Article
शिक्षा मानव केजीवन की आधार शिला है। मानव का विकास और उन्नति शिक्षा पर ही निर्भर है, शिक्षा व्यक्तित्व का निर्माण भी करती है। जन्म के समय बालक पशुत्व आचरण करता है उस समय वह अपनी मूल प्रवृत्तियों से प्रेरित होकर कार्य करता है। शिक्षा उसकी इन प्रवृत्तियों को उचित मार्गदर्शन करके परिपक्वता प्रदान करती है। बालक एवं उसके व्यवहार को, उसके आचरण को, उसके क्रियाकलापों को उचित और समाजोपयोगी बनाती है। शिक्षा उसमें रचनात्मक शक्ति का विकास करती है। यदि शिक्षा का अर्थ अधिक समझें तो यही है कि शिक्षा ही वह गुरु तथा दीपक है जो कि मनुष्य को सही पथ दिखाती है तथा जिसकी दिशा तथा रोशनी को अपनाकर खुद को समाजपयोगी बनाकर समाज को विकास की ओर अग्रसर करता है तो यह गलत न होगा। भारत जैसा एक लोकतांत्रिक तथा बहुजनसंख्या वाले देश में शिक्षा का अधिकार अधिनियम (मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार 2009) माध्यमिक एवं उच्चतर माध्यमिक शिक्षा तथा बच्चों तक शिक्षा पहुचाने के लिए एक महत्त्वपुर्ण कदम के तौर पर समझा जा रहा है। इस अधिनियम को सर्वाधिक लाभ श्रमिकों के बच्चों को, बाल मजदूरों प्रवासी बच्चों विशेष आवश्यकता वाले बच्चों या फिर ऐसे बच्चों को-जो सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, भौगोलिक, भाषाई अथवा लिंग कारको की वजह से वंचित बच्चों में शामिल है।प्रस्तुत शोध में हम प्राथमिक शिक्षा में आने वाले मुद्दों एवं भारत में जो शिक्षा का आधार है उसका अध्धयन करेंगे।