Article Details

‘हरिऔध’ की भाषा के विविध रूप | Original Article

Parveen Devi*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

हरिऔध जी ने ब्रजभाषा और खड़ी बोली दोनों में ही रचना की है, किंतु उनकी अधिकांश रचनाएँ खड़ी बोली में ही हैं। हरिऔध की भाषा प्रौढ़, प्रांजल और आकर्षक है। कहीं-कहीं उसमें उर्दू-फारसी के भी शब्द आ गए हैं। नवीन और अप्रचलित शब्दों का प्रयोग भी हुआ है। संस्कृत के तत्सम शब्दों की तो इतनी अधिकता है कि उनकी रचनाएँ हिन्दी की बजाय संस्कृत की रचनाएँ जान पड़ती हैं। एक ओर जहाँ उन्होंने संस्कृत गर्भित उच्च साहित्यिक भाषा में रचनाएँ लिखी वहीं दूसरी ओर सरल तथा मुहावरेदार व्यवहारिक भाषा को भी सफलतापूर्वक अपनाया। हरिऔध जी ने गद्य और पद्य दोनों ही क्षेत्रों में हिन्दी की सेवा की। ये द्विवेदी युग के प्रमुख कवि हैं। इन्होंने सर्वप्रथम खड़ी बोली में काव्यरचना करके यह सिद्ध कर दिया कि ब्रजभाषा के अलावा हिन्दी भाषा में भी काव्य रचना की जा सकती है। हरिऔध की भाषा में हम विविध भाषाओं की झलक देखते हैं जो अन्य किसी रचनाकार की रचनाओं में हमें बहुत कम देखने को मिलती है।