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महात्मा गाँधी का सामाजिक दर्शन | Original Article

Parveen Kumar*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

गाँधी जी एक महान् समाज सुधारक थे। उन्होंने भारतीय समाज में फैली अनेक बुराइयों यथा अस्पृश्यता, बाल-विवाह, विधवाओं की दुर्दशा, समुद्र यात्रा की मनाही, लड़कियों को शिक्षा की मनाही इत्यादि का घोर विरोध किया। उनका कहना था कि इन बुराइयों ने हिन्दू समाज को जर्जर बना दिया था। अनैतिकता व भ्रष्टाचार भारतीय समाज को अंदर ही अंदर खाए जा रहे थे। दूसरी ओर रूढ़िवादी व धर्म के ठेकेदार लोग अंध-विश्वासों में उलझे हुए थे। फलस्वरूप हिन्दुस्तान से बाहर एक सामान्य विदेशी भी इसे ‘जादू-टोने वाले लोगों का देश’ समझा करता था। इन विपरीत परिस्थितियों में एक कर्मयोगी व व्यावहारिक राजनीतिज्ञ की भाँति गाँधी जी ने सामाजिक व्यवस्था की बुराइयों की ओर पूरे देश का ध्यान खींच कर समाज को सुधारने का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कार्य किया। उन्होंने सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक समस्याओं के बीच तालमेल बैठाकर उन्हें सही दिशा देने का प्रयत्न किया। उनके सामाजिक विचार उनके चिंतन को सामाजिक आधार प्रदान करते हैं।