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हिन्दी की रीतिकालीन कविता: पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता | Original Article

Meena Kumari*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

हिन्दी साहित्य के इतिहास का पूर्व मध्यकाल भक्त-कवियों का काल था, जिनकी अमृतमयी वाणी का प्रभाव जन-जन पर पड़ा था। उनके काव्य में आध्यात्म रस था, संगीत की स्वरलहरी थी और साथ ही निरहंकार व्यक्तित्व का था निमज्जन। वे ईश्वर के गुणगान में मस्त थे। वे त्यागी-महात्मा किसी लौकिक एषणा से काव्य-रचना में प्रवृत्त नहीं हुए थे। वे केवल आत्मतुष्टि- ‘स्वान्तः सुखाय’ के लिये काव्य-रचना करते थे। संतों-भक्तों का काव्य मनुष्य-जीवन को उदात्व, निष्कलुष और ईश्वरोन्मुख करने वाला काव्य था- उसे आदर्श भावभूमि पर स्थापित करने वाला काव्य था, वह जीवन का एक व्यापक व्याख्यान था।