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मंगलेश डबराल के साहित्य में सौन्दर्य | Original Article

Sumit .*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

सृजनात्मक सौन्दर्य को कला कहते हैं। भारतीय साहित्य में चैंसठ कलाओं का उल्लेख मिलता है। वात्स्यायन के कामसूत्र (2,2,2) में चैंसठ कलाओं को कुछ भिन्नता से गिनाया है। ‘‘पश्चिमी विचारकों के अनुसार कला का इतिहास उस काल से प्रारम्भ होता है, जब गुफा निवासी अपने अवकाश में गुफामित्तियों पर जानवरों को चित्रित करते तथा अपने देवताओं की अप्रबुद्ध प्रतिमाएँ बनाते थे। प्रारंभिक सभ्यता में चित्र तथा शिल्पकलाओं का विकास हो चुका था। मिश्र देश में ईसा पूर्व चतुर्थ शती में पहनने के सुन्दर सुसज्जित आभूषण और असीरिया के तथा क्रीट में मिनोस प्रसाद के चित्र इसके ऐसे अच्छे उदाहरण हैं जिनका पर्यवसान एथिंस के पर्थिनन नामक मन्दिर के निर्माण में हुआ। रोम की कला मुख्यतः स्थापत्यपरक थी, जिसके भवन वर्णमयी पच्चीकारी से सम्पन्न थे। विजंटियन काल नक्काशी, कसीदा और उत्कृष्ट मीनाकारी के लिए प्रसिद्ध रहा है। उसी समय रोगी शिल्प तो पूर्वकृतियों में लक्षित परम्पराओं से मुक्त हुआ और प्रकृतिवादी कला का सूत्रपात हुआ।’’