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राष्ट्रीय आन्दोलन में स्वराज्य दल के योगदान का विश्लेषणात्मक अध्ययन | Original Article

Lalitmohan .*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

1922 में चौरी-चौरा की घटना के पश्चात् महात्मा गांधी ने असहयोग आन्दोलन वापिस ले लिया। इसमें कांग्रेसी नेताओं में निराशा एवं क्षोभ का वातावरण उत्पन्न हो गया। महात्मा गांधी की गिरफ्तारी से राष्ट्रवादियों में भी फूट पड़ गई और कांग्रेस का संगठन टूटने लगा। 1922 में सी. आर. और मोतीलाल नेहरू ने औपनिवेशिक सत्ता का विरोध जारी रखने का निर्णय लिया। उन्होंने कांग्रेस से अलग स्वराज्य दल गठित कर लिया और स्वराज्य प्राप्ति के लिए संघर्ष जारी रखने का निर्णय लिया। प्रो. विपिन चन्द्र ने भी लिखा है, “इन्होंने सुझाव दिया कि राष्ट्रवादी आन्दोलनकारी विद्यान परिषदों का बहिष्कार करें। इन परिषदों का सदस्य बनकर वे पाखण्डी संसद का पर्दाफाश करें, परिषदों के सभी कमों में रूकावट डालकर नौकरशाही के इस नकाब को उखाड़ दें। इनका तर्क था कि यह युक्ति असहयोग आन्दोलन का परित्याग नहीं बल्कि उसे और प्रीत्तावी बनाने की रणनीति है। यह संघर्ष में एक नया मोर्चा साबित होगा।’’