‘आओ पेपें घर चलें’ उपन्यास में वर्णित नारी मन की अंर्तर्व्यथा | Original Article
‘आओ पेपें घर चलें’ प्रभा खेतान का पहला व श्रेष्ठ उपन्यास है। जिसमें उन्होने स्त्री जाति की मानसिक यंत्रणा, वेदना को उचित रूप से अभिव्यक्त किया है। तलाक, प्रेम, विवाहेतर सम्बन्ध जैसी समस्याओं को इस उपन्यास में सफलता के साथ उकेरा गया है। प्रभा जी ने पीड़ाओं को सहकर जीने के लिए मजबुर बन गई स्त्री पात्रों के मानसिक द्वन्द्व, कुन्ठा तथा भय को अपने उपन्यास में बेहद ही संजीव रूप से प्रस्तुत किया। उपन्यास में मरील, प्रभा, एलिजा, आइलिन, कैथी, क्लारा ब्राउन, कैथी आदि स्त्री पात्रों के जीवन अंकन के द्वारा प्रभा जी ने आज की स्त्री को वैश्विक धरातल पर अंकित किया। ‘आओ पेपें घर चलें’ की सभी नारी पात्र किसी ना किसी मानसिक तनाव से ग्रस्त हैं। इनमें से कोई पात्र तो विवाह विच्छेद होने पर बौखलाया हुआ है तो कोई पात्र अपने दाम्पत्य जीवन को बचाने की कोशिश में लगा है। अन्य पात्रों में कहीं आत्मनिर्भर बनने का प्रश्न है तो कहीं शान-औ-शौकत का जीवन जीने की लालसा है। कुल मिलाकर यह उपन्यास नारियों के मन की अंतव्र्यथा को चित्रित करने में पूर्णतः सफल हुआ है।