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महादेवी के काव्य में विरह वेदना | Original Article

Babita .*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

महादेवी वर्मा हिन्दी की प्रतिभावान कवयित्रियों में से एक है जिनकी गणना छायावाद के चार प्रमुख स्तम्भों में की जाती है। अनुभूतियां जब तीव्र होकर कवि हृदय से उच्छलित होती है तो उन्हे कविता के रूप में संजोया जाता है। महादेवी वर्मा ने मन की इन्ही अनुभूतियों को अपने काव्य में मर्मस्पर्शी, गंभीर तथा तीव्र संवेदनात्मक अभिव्यक्ति प्रदान की है। महादेवी जी ने अपना काव्य वेदना और करूणा की कलम से लिखा उन्होने अपने काव्य में विरह वेदना को इतनी सघन्नता से प्रस्तुत किया कि शेष अनुभूतियां भी उनकी पीड़ा के रंगों में रंगी हुई जान पड़ती है। महादेवी का विरह उनके समस्त काव्य में विधमान है। वे वेदना से प्रारंभ करके वेदना में ही अपनी परिणति खोज दिखाई देती है। महादेवी जी की वेदनानूभूति संकल्पात्मक अनुभूति की सहज अभिव्यक्ति है। उनकी काव्य की पीड़ा को मीरा की काव्य पीड़ा से बढकर माना गया है। महादेवी के काव्य का प्राण तत्व उनकी वेदना और पीड़ा रहे। वे स्ंवय लिखती है,’ दुःख मेरे निकट जीवन का ऐसा काव्य है जो सारे संसार को एक सूत्र में बांधने की क्षमता रखता है।’1 महादेवी की विरह वेदना में परम तत्व की अभिव्यक्ति दिखाई देती है। उनके काव्य का मुख्य प्रतिपाद्य प्रिय से बिछुडना और उसे खोजने की आतुरता है। महादेवी जी ने अपने काव्य में आत्मा और परमात्मा के वियोग को विरहानुभूति के रूप में प्रस्तुत किया है।