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आधुनिक हिन्दी गद्य साहित्य में ‘भारतेन्दु-युग’ | Original Article

Okendra .*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

भारतेन्दु-युग आधुनिक हिन्दी-गद्य साहित्य के बहुमुखी विकास का युग है। भारतेन्दु- युग में अर्थात् उन्नीसवीं सदी के अन्तिम चरण में पूरे देश में ‘सांस्कृति-जागरण’ एवं ‘राष्ट्रीय-जागरण’ की लहर दौड़ चुकी थी और सामंतीय सामाजिक ढांचा टूट चुका था। अंग्रेजी-शिक्षा के विकास की गति चाहे जितनी भी धीमी रही हो और उसके उद्देश्य चाहे जितने भी सीमित रहे हों, उसका व्यापक प्रभाव सम्पूर्ण देश के शिक्षित समाज पर पड़ रहा था, जिसके परिणाम स्वरूप सम्पूर्ण देश में एक सशक्त मध्यमवर्ग तैयार हुआ, जो अत्यधिक संवेदनशील था। देश में यह वर्ग व्यापक ‘राष्ट्रीय’ एवं ‘सामाजिक’ हितों की दृष्टि से भी सोचने लगा तथा अनुभव करने लगा कि हमारा देश अत्यन्त ‘हीनावस्था’ में है तथा जीवन के सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, राजनीतिक इत्यादि सभी क्षेत्रों में परिवर्तन एवं सुधार की आवश्यकता है। भारतेन्दु जी इसी प्रगतिशील चेतना के प्रतिनिधि थे भारतेन्दु जी ने अपने हिन्दी-गद्य-साहित्य के माध्यम से ठीक समय पर उचित नेतृत्व प्रदान किया और अपने निबन्धों, नाटकों तथा भाषणों में ‘राष्ट्रीय-जागरण’ का संदेश दिया। जो संदर्भित समय की एक मूल आवश्यकता थी। जिससे देश में ‘राष्ट्रीय भावना’ का अद्घोष हुआ तथा देशवासी अपने कत्र्तव्यों का निर्वहन कर ‘राष्ट्रीयजागरण’ के प्रति उत्तरदायी बनें, तथा इनके सहयोगी कवियों ने उनके द्वारा ‘प्रशस्त-पथ’ पर चल कर ‘आधुनिक हिन्दी ग़द्य-साहित्य, की जो सेवा अपने आलेखों, कृतियों, रचनाओं, इत्यादि के द्वारा की है, वह अविस्मरणीय है। प्रस्तुत लधु शोध में शोधार्थी द्वारा आधुनिक हिन्दी-साहित्य में भारतेन्दु-युग के महत्व के बारे में संक्षेप में वर्णन किया है। जिसमें भारतेन्दु-युग में पुर्नजागरण, भक्ति-भावना, सामाजिक-चेतना, समस्यापूर्ति, काव्य श्रृंगारिता तथा विभिन्न काव्यधाराओं इत्यादि का संक्षेप में साहित्यिक महत्व प्रस्तुत किया गया है।