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वैवाहिक स्थिति में नारी यौन शोषण | Original Article

Pradeep Kumar Mishra*, Piyush Tyagi, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

भारत के बहुविध समाज में स्त्रियों का विशिष्ट स्थान रहा है। पत्नी को पुरूष की अर्धांगिनी माना गया है। वह एक विश्वसनीय मित्र के रूप में भी पुरूष की सदैव सहयोगी रही है। कहा जाता है कि जहां नारी की पूजा होती है वहीं देवता रमण करते हैं। वह पति के लिए चरित्र, संतान के लिए ममता, समाज के लिए शील और विश्व के लिए करूणा संजोने वाली महाकृति है। एक गुणवान स्त्री काँटेदार झाड़ी को भी सुवासित कर देती है और निर्धन से निर्धन परिवार को भी स्वर्ग बना देती है। वर्तमान भारतीय समाज का राजनीतिक नारा है ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’, मगर सामाजिक-सांस्कृतिक आकांक्षा है ‘आदर्श बहू’। वैसे भारतीय शहरी मध्य वर्ग को ‘बेटी नहीं चाहिए’, मगर बेटियाँ हैं तो वो किसी भी तरह की बाहरी (यौन) हिंसा से एकदम ‘सुरक्षित‘ रहनी चाहिए। हालांकि रिश्तों की किसी भी छत के नीचे, स्त्रियां पूर्ण रूप से सुरक्षित नहीं हैं। यौन हिंसा, हत्या, आत्महत्या, दहेज प्रताड़ना और तेजाबी हमले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। विवाह को मुस्लिम वैयक्तिक विवाह कानूनों में एक कानूनी समझौता मात्र माना जाता है ये कानूनी समझौता कभी भी समाप्त किया जा सकता है। इसमें विवाह को कहीं पर भी संस्कार नही माना गया है जैसा कि हिन्दू विवाह अधिनियम मे माना गया है कानूनी समझौता मूल रूप से अस्थायी प्रकृति का होता है जब कि संस्कार दो आत्माओं का मिलन माना गया है और ये जन्म - जन्मान्तर तक चलने वाला सम्बन्ध है इसको किसी तरह से निभाने की प्र्रवृन्ति हिन्दू समाज में वर्षो तक चलती रही है पर अब अनेक बाहरी प्रभावों के कारण इसमें परिवर्तन आता जा रहा है अब न तो ये रिश्ता पूर्ण रूप से स्थायी प्रकृति का ही रह गया है और न ही यह पूर्ण रूप से संस्कारित ही रह गया है स्थायी प्रकृति और संस्कारित प्रकृति का उलाहना देते हुए महिलाओं का ज्यादातर कभी - कभार पुरुष का भी शोषण होता आया है। ज्यादातर महिलाओं का ही शोषण होता आया है परन्तु बदलते परिवेश और सशक्तिकरण ने मनोदशा को काफी परिवर्तित कर दिया है। धारा-375 का एक मात्र अपवाद यह है कि पत्नी अगर 15-वर्ष से कम उम्र की नहीं है तो पति द्वारा अपनी पत्नी से किया जाने वाला संभोग बलात्कार नहीं है। गर्भवती होने, महावारी जारी होने या अस्वस्थता की स्थिति में पत्नी से उसकी मर्जी अथवा सहमति से सम्भोग का अधिकार सिर्फ उसके पति को हैं, पत्नी की व्यक्तिगत इच्छा का कोई अर्थ नहीं। पति जब चाहे पत्नी से अपनी काम पिपासा की तुष्टि कर सकता है। पुरूष को प्राप्त यह अधिकार निश्चय ही अमानवीय और पाश्विक है।