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गांधी जी के विचारों की नये संदर्भ में व्याख्या की सार्थकता | Original Article

Karamvir Singh*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

आज गांधी जी का आर्थिक सिद्धान्त उन बहुत से विचारकों के लिए शोध का विषय है जो किसी विशेष लक्ष्य पर नया प्रकाश डालना चाहते हैं। गांधी जी के विचारों की नये संदर्भ में व्याख्या करने से दबी हुई सामाजिक-आर्थिक सोच योजना और कार्यों के समाधान में मदद मिलती है जो अपने देश की ही नहीं बल्कि संसार के सभी देशों की समस्याओं के प्रति भी वही दृष्टिकोण रखती है। इसके अतिरिक्त किसी को भी इस तथ्य को अनदेखा नहीं करना चाहिए कि गांधी जी अर्थशास्त्री नहीं थे। उन्होंने कभी भी गहराई से आर्थिक व्यवस्था और उसको प्रभावित करने वाले कारकों का अध्ययन नहीं किया और न ही पूर्णतया पूंजिवाद की गतिशीलता को समझ सके। यहाँ चर्चा का मुख्य विषय ही है कि हम गांधी जी के व्यक्तित्व और विचारों का आदर करें और आर्थिक सिद्धान्त का उद्देश्य जानें। आर्थिक सिद्धान्त से सम्बन्धित बहुत से महत्वपूर्ण प्रश्न उदय होते हैं। वे इसकी सार्थकता से जुड़े हैं। क्या आर्थिक सिद्धान्त आधुनिक समय में सार्थकता रखता है और समकालीन भारतीय समाज इसकी सार्थकता है? क्या यह एक व्यावहारिक सिद्धान्त है, किस प्रकार ये सिद्धान्त लागू किया जा सकता है। इस सिद्धान्त की सार्थकता के विषय में विद्वानों के विचारों में विरोधाभास है।