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कहानी सग्रह ‘खयालनामा’ में नारी की सामाजिक स्थिति: एक दृष्टि | Original Article

Mahipal .*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

मनुष्य समाज और समाज मनुष्य के बिना अधुरा है। साहित्यगत अनुभूतियाँ व्यक्ति एवं समाज के यथार्थ को चित्रित करने के साथ-साथ व्यक्ति एंव समाज का पथप्रदर्शन भी करता है, इसलिए समाज व्यक्ति और साहित्य एक दूसरे से परे नहीं किया जा सकता। साहित्य समाज का दर्पण ही नहीं, समाज का दीपक भी है। डॉ. रामविलास शर्मा मनुष्य एवं समाज के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए कहा है कि- “मनुष्य के व्यक्तित्व का विकास उसके सामाजिक जीवन से ही संभव है। इसलिए व्यक्ति एंव समाज की स्वाधीनता एक दूसरे के विरोधी न होकर एक दूसरे पर अश्रित है।’’