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कबीर और जायसी का रहस्यवाद: तुलनात्मक विवेचन | Original Article

Surender Kumar*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

काव्य की उस मार्सिक भावभिव्यक्ति को रहस्यवाद कहते हैं जिसमें एक भावुक कवि अव्यक्त अगोचर एवं अज्ञात सत्ता के प्रति अपने प्रमोद्गार प्रकट करता हैं। काव्य की इस भावभिव्यक्ति के बारे में विद्वानों के विविध विचार मिलते हैं। जैसे आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने लिखा है कि जहाँ कवि उस उनन्त और अज्ञात प्रियतम को आलम्बन बनाकर अत्यन्त चित्रमयी भाषा में प्रेम की अनेक प्रकार से व्यंजना करता है उसे रहस्यवाद कहते हैं। डॉ॰ श्याम सुन्दर दास ने लिखा है कि चिन्तन के क्षेत्र का ब्रह्मवाद कविता के क्षेत्र में जाकर कल्पना और भावुकता का आधार पाकर रहस्यवांद का रूप पकड़ता है। महाकवि जयशंकर प्रसाद के अनुसार- ’रहस्यवाद में अपरोक्ष अनुभूति समरसता तथा प्राकृति सौन्दर्य के द्वारा अहं का इदं से समन्वय करने का सुन्दर प्रयत्न है। सुप्रसिद्ध रहस्यवादी कवयित्री महादेव वर्मा ने- अपनी सीमा को असीम तत्त्व में खो देने को रहस्यवाद कहा है। डॉ॰ रामकुमार वर्मा का विचार है कि रहस्यवाद जीवात्मा की उस अन्तर्हित प्रवृत्ति का प्रकाशन है। जिसमें वह दिव्य और अलौकि शक्ति से अपना शान्त और निश्छल सम्बन्ध जोड़ना चाहती है और यह सम्बन्ध यहाँ तक बढ़ जाता है कि दोनेां में कुछ भी अन्तर नहीं रह जाता।’’