स्वातन्त्रयोत्तर हिन्दी कविता एवं रचनात्मक सरोकार | Original Article
स्वतन्त्रता के बाद जो काव्य रचा गया था, उसमें कुछ नई प्रवृत्तियों का समावेश था। यह नयापन विषयगत और शिल्पगत दोनों प्रकार का था। ये नयी प्रवृत्तियाँ ही किस काव्यधारा की अलग पहचान करवाने में पूर्ण भूमिका निभाती हैं।