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चौथी शताब्दी से सातवीं शताब्दी के बीच विज्ञान एवं तकनीक : एक अध्ययन | Original Article

Ravi Dutt*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

चौथी से सातवीं शताब्दी के बीच भारत में विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र में उल्लेखनीय विकास हुआ, जिनका संकलन विभिन्न वैज्ञानिक एवं तकनीक ग्रंथों मे मिलता है। इस काल की विज्ञान एवं तकनीक मे महान योगदान आर्यभट्ट प्रथम, वराहमिहिर, भास्कर प्रथम तथा ब्रह्मगुप्त का रहा है। आर्यभट्ट का गणित के क्षेत्र में विशेष स्थान रहा है। उन्होनें गणित ज्योतिष एवं बुनियादी सिद्वान्तो को स्पष्ट रुप से समझाया। यह उन्ही के प्रयासो का परिणाम था कि गणित को ज्योतिष से अलग शास्त्र माना गया। उनका विश्वास था कि पृथ्वी गोल है और अपनी धुरी पर घुमती है तथा इसकी छाया चंद्रमा पर पडने के कारण ग्रहण पडता है। हांलाकि उनके गणित सिद्वान्त की बाद में आने वाले ज्योतिषों ने उनके क्रांतिकारी विचारो की आलोचना भी की क्योकि इस संबंध मे वह परंपराओं और धर्म के विरुद्व नही जाना चाहता था। परंतु इस काल के ज्योतिर्विदों मे आर्यभट्ट के वैज्ञानिक विचारों को सर्वोत्तम माना गया है। इस काल में एकमात्र आर्यभटीय नामक ग्रंथ की रचना हुईं जिसका लेखक अज्ञात है। आर्यभट्ट के सिद्वांतों पर भास्कर प्रथम ने अनेक टिकाएं लिखकर उनकों विशेष ख्याति प्रदान की। भास्कर प्रथम ब्रह्मगुप्त के समकालीन था और स्वयं भी प्रसिद्व खगोलशास्त्री थे। उन्हाने तीन महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की। ये ग्रंथ है-महाभास्कर्य, लघुभास्कर्य और भाष्य।