मृदुला गर्ग के उपन्यास चितकोबरा व कठगुलाब में नारी-विमर्श | Original Article
हिन्दी लेखिका मृदुला गर्ग का व्यक्तित्व बहुत ही शर्मीला और अंतर्मुखी माना जाता है। किसी भी लेखक की रचना प्रक्रिया युगीन परिस्थितियों तथा वातावरण से प्रभावित होती है। लेखक जो कुछ वातावरण में घट रहा होता है, उसी को अपने साहित्य में उतारता है तो मृदुला गर्ग ने भी अपने कथा साहित्य में अभिव्यक्ति की है। मृदुला गर्ग नए युग की लेखिका हैं उन्होंने अपने साहित्य लेखन से समाज को एक नई दिशा दी। उनका लेखन प्रमुख रूप से समाज के रीति-रिवाजों में घिरी स्त्रियों की समस्याओं पर आधारित है। उन्होंने महसूस किया कि हमारे समाज में स्त्रियां भिन्न-भिन्न प्रकार की पीड़ाओं से, संघर्षों से जूझ रही है। मृदुला गर्ग का लेखन साहित्य ऐसी ही स्त्रियों की दास्ता बंया करता हैं। मृदुला जी आज जिस मुकाम पर है उसे पाने के लिए उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा। डॉ. तारा अग्रवाल उनके व्यक्तित्व के बारे में कहती है- ’’एक लेखिका के रूप में अपने को स्थापित करने के लिए उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ता है। मृदुला गर्ग के लेखकीय व्यक्तित्व के निर्माण में उनके परिवार की भूमिका तथा परिवेशगत सरकार प्रमुख रहे है।’’1