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साहित्यानुवाद की समस्याऐं | Original Article

Lila Ram*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

साहित्य का अनुवाद एक बड़ी चुनौती भरा कार्य है। यह बहुत कठिन कार्य माना जाता है। इसके अनुवाद को लेकर काफी विवाद रहा है। साहित्य के अनुवाद पर H.de Forest Smith ने कहा है Translation of Literary work is as tasteless as a stewed strawberry. वस्तुतः साहित्य का अनुवाद अधिक दुष्कर तो है लेकिन इसे असंभव नहीं कहा जा सकता। विश्व में अब तक साहित्य के काफी संख्या में अनुवाद हुए है। इन अनुवादों को अस्वीकार नहीं किया जा सकता है और ऐसा भी नहीं कहा जा सकता कि साहित्य का अनुवाद हो ही नहीं सकता, हाँ यह जरूर कि साहित्य के बहुत कम ही अनुवाद मूल पाठ का पूरी तरह प्रतिनिधित्व करते है, किन्तु हम यह कह सकते है कि मूल साहित्य और उसका अनुवाद दोनों एक हैं। फिर भी मूल पाठ और अनुवाद में अंतर का प्रश्न तो रहता ही है, क्योंकि एक मूल और दूसरा अनुवाद जो ठहरा, हमें यह मानकर चलना होगा कि मूल मूल है और अनुवाद अनुवाद, तो साहित्यानुवाद असंभव नहीं होगा। वैसे तो किसी भी रचना का अनुवाद सरल नहीं होता, किन्तु साहित्य का अनुवाद इसलिए भी कठिन होता है कि कई बातों में साहित्य अन्य सृजन से अलग होता है। साहित्य में कुछ तत्व ऐसे होते है, जो अन्य सृजन में नहीं होते तथा जिन्हे अनुदित करना बहुत कठिन होता है। साहित्य की पद्य तथा गद्य विद्या पर विचार करें तो स्पष्ट होता है कि गद्य के अनुवाद की तुलना में पद्य का अनुवाद अधिक कठिन होता है। पद्य के अन्तर्गत आने वाली विद्या ‘‘कविता का अनुवाद बहुत बड़ी चुनौती है। यह दुष्कर कार्य माना जाता है, एक हद तक असंभव भी।’’1 इसमें कथ्य तथा अभिव्यक्ति दोनों का योग होता है जो पाठक पर प्रभाव छोड़ता है। यहाँ कथ्य व अभिव्यक्ति दोनों एक दूसरे के पूरक हैं, किन्तु अनुवाद करते समय प्रत्येक भाषा में इस प्रकार का तालमेल उसी रूप में नहीं बैठाया जा सकता, ना ही एक सा प्रभाव पैदा किया जा सकता।