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डॉ. रामकुमार वर्मा के काव्य में प्रकृति के विविध आयाम | Original Article

Sukesh .*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

प्रकृति की प्रेरणा के द्वारा हमें काव्य का ज्ञान प्राप्त होता है। कविता करने की प्ररेणा हमें प्रकृति से ही प्राप्त होती है। हिन्दी साहित्य के इतिहास में भी प्रकृति का महत्वपूर्ण स्थान है। छायावादी युग में प्रकृति का चित्रण काफी मात्रा में हुआ है। इस युग के प्रत्येक कवि ने प्रकृति का चित्रण अपनी अपनी कविताओं में अपने तरीके से किया है। इसलिए छायावाद की मूख्य विशेषता प्रकृति चित्रण बन गई है। छायावादी कवियों ने अपनी रचनाओं में आलम्बन और उद्दीपन दोनों ही रूपों का बडा ही सुन्दर चित्रण किया है। वर्मा जी ने अपने काव्य में प्रकृति को विशेष महत्व दिया है। वर्मा जी का प्रकृति चित्रण परम्परागत न होकर मौलिक है। वर्मा जी ने प्रबन्ध और गीत दोनों ही प्रकार की रचनाओं में प्रकृति चित्रण, प्रकृति के अनुसार किया है। नदी वर्णन, पर्वतवर्णन, सागरवर्णन, बादल बिजली वर्णन, वनस्पति वर्णन खेत-खलिहान वर्णन, नगर वर्णन, जीव-जन्तुओ का वर्णन, पशु-पक्षियों का वर्णन, सूर्य-चाँद का वर्णन, प्रातःसंध्या-दोपहर का वर्णन, ऋतु-माह वर्णन आदि के विषय में वर्मा जी बड़ा सुन्दर चित्रण किया है।