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पारिवारिक विघटन के बीच अपनों में उपेक्षित बुजुर्ग | Original Article

Pooja .*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

समकालिन दौर स्पर्धा का दौर हैं। इसमें लोग आगे बढ़ने के लिए अपनों की भावनाओं तक को दांव पर लगा देते हैं। माता-पिता अकेले होते जा रहे हैं और नई पीढ़ी भावनाओं के मामले में पीछे रह गई हैं। शहरों में तो वृद्धों के लिए वृद्धाश्रम हैं जो पैसे वाले लोगों को सभी सुविधाएं प्रदान करते हैं लेकिन गाँवों में निर्धनता और बेरोजगारी का बोलबोला हैं। वहाँ के वृद्ध माता-पिता घुट-घुट कर अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं। जो माँ-बाप चार बेटों का पेट भर सकते थे, आज वही चार बेटे मिलकर भी एक वृद्ध माता-पिता को दो वक्त की रोटी नहीं दे सकते। सारा जीवन सम्मानपूर्वक व्यतीत करने वाले वृद्धों को घृणित जीवन जीने के लिए विवश होना पड़ता हैं। आज की युवां पीढ़ी इस उपभोक्तावादी युग में अपने कर्तव्यों को ही भूलती जा रही हैं।