साम्प्रदायिकता की संवैधानिक कठिनाई को हल करने के लिए नेहरू रिपोर्ट : एक अध्ययन | Original Article
नेहरू रिपोर्ट भारत के इतिहास में अपना एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। साइमन कमीशन में किसी भी भारतीय को स्थान नहीं दिया गया था। इसके कारण का उल्लेख करते हुए लार्ड वर्केनहेड ने हाऊस ऑफ़ लार्ड में भाषण देते हुए कहा कि उनके पारस्परिक मतभेज के कारण ही किसी भारतीयों को कमीषन में शामिल नहीं किया गया। अंगे्रजों का माना था कि भारत में अनेक राजनीतिक दल और समूह विद्यामान हैं और भारत के लोग इतने विशाल देश के शासन को चलाने के लिए ऐसा संविधान बनाने में असमर्थ हैं जो सभी राजनीतिक दलों एवं उल्पसंख्यकों को स्वीकार हो। उसने अपने भाषण में भारतीयों को चुनौती दी कि भारतीय एक ऐसे संविधान का निर्माण कर ब्रिटिश संसद के समक्ष प्रस्तुत करे जो सभी को मान्य हो और सर्वसम्मति से तैयार किया गया हो। भारतीयों ने इस चुनौती को स्वीकार कर लिया। उन्होंने भारत के लिए नीवन संविधान बनाने के लिए 28 फरवरी, 1928 को दिल्ली में एक सर्वदलीय सम्मेलन बुलाया। इसके विषय में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने भी कहा था कि- “कांग्रेस ने यह प्रयास अंगेजों की चुनौती का सामना करने के लिए ही नहीं किया बल्कि अन्य दलों की सहायता से नया संविधान तैयार क रवह अपने देशवासियों के सम्मुख अपने विचार और मांगे भी रखना चाहती थी। उनका विचार था कि ब्रिटिश सरकार ऐसे संविधान को आसानी से स्वीकार कर लेगी।