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भारतीय राजनीति पर साईमन कमीशन का विश्लेषणात्मक अध्ययन | Original Article

Manjeet Singh*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

1972 ई. में राष्ट्रीय आन्दोलन में ठहराव आ चुका था। देश में साम्प्रदायित दंगे जोरों पर प्रचलित थे और गांधी जी भी अधिक सक्रिय नहीं थे। भातीय राष्ट्रवादियों ने प्रारंभ तो 1919 के सवैधानिक अधिनियम को अपर्याप्त बताया परन्तु सरकार इस बात पर अड़ी रही कि इस अधिनियम पर दस वर्ष के पश्चात् गौर किया जायेगा। अतः सरकार ने इसी वर्ष साइमन कमीशन की नियुक्ति कर दी जिससे भारत का राजनीतिक माहौल एक बार फिर गरमा गया। “1919 के अधिनियम में यह व्यवस्था की गई थी कि सरकार शासन व्यवस्था के संचालन की जांच करने के लिए भारत में प्रतिनिधि संस्थाओं के विकास के लिए और भारत में प्रचलित उत्तरदायी सरकार के विस्तार के लिए तथा उसमें संशोधन करने अथवा उन पर प्रतिबन्धलगाने के लिए 10 वर्ष पश्चात् एक कमीशन की नियुक्ति करेगी।’’ परन्तु साईमन कमीशन की नियुक्ति दो वर्ष पहले ही कर दी गई।