भक्ति आन्दोलन का उदय और विकास | Original Article
ईश्वर के प्रति जो परम प्रेम है उसे भक्ति कहते हैं। नारद भक्ति-सूत्र में कहा गया है कि ‘परमात्मा’ के प्रति परम प्रेम को भक्ति कहते है। भक्ति शब्द की निष्पति ‘भज’ धातु से हुई है जिसका अर्थ है ‘सेवा करना’ भक्ति में ईश्वर का भजन, पूजन, अर्पण आदि शामिल होता है। हिन्दी साहित्य के इतिहास का वर्गीकरण करने पर द्वितीय चरण को भक्तिकाल की संज्ञा दी गई है। तथा इसे पुनः दो भागों में विभाजित किया गया है। पूर्व मध्यकाल एवं उत्तर मध्यकाल पूर्व मध्यकाल को ही भक्तिकाल कहा जाता है। इस काल में मुगल सल्तनत भारत में स्थापित हो चुकी थी। मुस्लिम शासकों के अत्याचारों से आहत होकर हिन्दू जनता ने प्रभु की शरण में अपने आपको सुरक्षित महसूस किया और भक्ति मार्ग का अनुसरण किया। भक्ति आन्दोलन में नये विचारो का जन्म हुआ इसने भारतीय संस्कृति एवं समाज को एक दिशा दी। इस आन्दोलन ने एक और माननीय भावनाओं को उभारा, वहीं व्यक्तिवादी विचारधारा को सशक्त बनाया जिसमें भक्ति के माध्यम से ईश्वर से सम्पर्क स्थापित करके सदाचार, मानवता, भक्ति और प्रेम जरूरी समझा गया।