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मोलिक अधिकार के रूप में निजता का अधिकार: एक विवेचना | Original Article

Abhlekh Yadav*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

मौलिक अधिकार हमारे जीवन का आधार है। व्यक्ति के बहुमुखी विकास के लिए जिन अधिकारो का प्राप्त होना आवश्यक है, उन्हे हम मौलिक अधिकार कहते है। शुरूआत से ही निजता के अधिकार को मौलिक अधिकारों में शामिल करने को भाग उठाई जा रही थी। वर्ष 1954 में “एम. पी. शर्मा बनाम सतीश चन्द्रा गद” से हो निजता के अधिकार पर बहस शुरू हो चुकी थी। परन्तु इसमें सर्वोच्य न्यायालय ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार मानने से ड्रकार कर दिया अंततः 24 अगस्त 2017 को सर्वोच्य न्यायालय की 9 सद्स्यीय खण्छपीठ ने ‘के. एस. पुत्तास्वामी बनाय भारत सघं’ वाद में ऐतिहासिक निर्णय देते हुए ‘निजता के अधिकार‘ को संविधान के ‘अनु. 21’ के ‘जीवन एवं स्वतंत्रता के अधिकार’ का अभिन्न हिस्सा माना, जिसे संविधान के ‘भाग 3’ द्वारा गारण्टी प्रदान को गयी है।