भारतीय साहित्य में स्त्री अस्मिता की तलाश | Original Article
स्त्री विमर्श-स्त्री अस्मिता और स्त्री चेतना का ही दूसरा रूप हैं इस दृष्टि से गहन धर्मवाला यह शब्द मुक्ति या स्त्री स्वातंत्र्य के साथ-साथ स्त्री की अस्मिता, चेतना एवं स्वाभिमान को भी अपने में समेट लेता है। स्त्री का अपने शरीर या जीवन जीने के तरीके के बारे में अपने को कर्ता बनाने का प्रयास या जीवन के स्वस्थ पक्ष को ग्रहणकर आत्म निर्णय की ताकत हासिल करना स्त्री विमर्श के अन्तर्गत आता है। स्त्री विमर्श को लेकर आज बहुत सवाल उठाये जा रहे हैं। जिनकी केन्द्रीय समस्या है- ‘पितृसत्तात्मक समाज की विसंगतिओं या पुरूष वर्चस्व के संस्कारेां की विडम्बनाओं से कैसे जूझा जाये?आरम्भ इस सत्य की स्वीकृति से की जा सकती है कि स्त्री ने अपनी अस्मिता से आधी दुनिया की अस्मिता को संम्भव बनाया, लेकिन हमारे सभ्य समाजों का इतिहास यह बताता है कि सभी को अपनी आवाज का हक पूरी तरह से नही दिया गया।