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भारत-चीन संघर्ष और अमेरिका संबंध | Original Article

Sonu .*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

जब भारत चीन युद्ध शुरू हुआ तो देश के कई भागों में इस बात की मांग होने लगी कि असलंग्नता की नीति पूर्णतयः असफल हो चुकी है और देश के हित में इसका जल्द से जल्द परित्याग किया जाना चाहिए। परन्तु 20 अक्टूबर, 1962 को रेड़ियो से राष्ट्र के नाम सन्देश देते हुये पं. नेहरू ने स्पष्ट कर दिया कि भारत अपनी असलंग्नता की नीति का अनुशरण करता रहेगा। इसके बाद चीन तथा भारत का युद्ध जारी रहा तथा नेफा में भारतीय सेना की पराजय हुई। युद्ध की स्थिति अत्यन्त गंभीर हो गयी और भारत की सुरक्षा अत्यंत खतरे में पड़ गयी। इस हालात में भारत सरकार ने पश्चिमी राष्ट्रों से सैनिक सहायता के लिए अपील की। अमेरिका और ब्रिटेनने भारत को सहायता देने का निर्णय किया और इन देशों से बड़ी मात्रा में शस्त्रास्त्र भारत पहुंचाए गये। नेहरू मानते थे कि असंलग्नता की नीति को छोड़कर अमेरिकी गुट में शामिल हो जाने के फलस्वरूप भारत-चीन सीमा संघर्ष शीत युद्ध का एक अंग बन जाता। नेहरू ने व्यवहारवादी दृष्टिकोण अपनाते हुये निर्णय लिया कि भारत अपनी रक्षा के लिए सभी मित्र राष्ट्रों से सहायता लेगा। लेकिन असंलग्नता की नीति का परित्याग नहीं करेगा।