भवभूते हृदयम् उत्तररामचरितम् | Original Article
उत्तरे रामचरिते भवभूतिर्विविष्यते वाली लोकोक्ति “उत्तररामचरितम्” के संबंध में बिल्कुल सत्य प्रतीत होती है। साहित्य के आलोचकों का अनुमान है कि इस रचना में भवभूति कालिदास से आगे बढ़ गए हैं। इस नाटक में उन्होने करूण रस का स्रोत बहाया है। विद्वानों का यह भी कहना है कि करूण रस के वर्णन में भवभूति संस्कृत के सब कवियों से आगे बढ़े हुए हैं। इसी नाटक में भवभूति ने स्वयं के लिए कहा है कि उनके संकेत पर सरस्वती उनकी जिह्या पर नाचने लगी थी। करूण रस के अलावा श्रृंगार और वीर रस के वर्णन में भी कवि ने लोकोत्तर कुशलता प्राप्त की। वीर रस की दृष्टि से युद्ध-वर्णनमाला प्रसंग अद्वितीय हैं।