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आपदा प्रबन्धनः मुद्दे और चुनौत्तियाँ | Original Article

Nitu Sharma*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

आज के समय में वैश्विक उष्मण और अन्य कारणों से पृथ्वी पर आपदा की प्रवृति तथा आपदा में प्रबलता बढ़ी है। आपदा की मार सबसे भंयकर होती है इसमें जान और माल की सबसे ज्यादा हानि होती है। आपदा आती थोडे समय के लिए है परन्तु इसका प्रभाव लम्बी अवधि तक रहता है। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि आपदा आने पर हम किस प्रकार से बच सकते और दूसरो की भी जान बचा सकते है। कुछ देश कार्बन उत्सर्जन को कम करने तथा वैश्विक उष्मण के प्रभाव को कम करने के प्रयास कर रहे है, हालांकि इन प्रयासो का कोई विशेष प्रभाव नही पडा है। हाल के दशको में, हाइड्रोलोजिकल आपदा सूचना की संख्या में औसतन प्रतिवर्ष 7.4 प्रतिशत की वृद्धि हो रही है। भारत में आपदाएं अलग-अलग क्षेत्र में अलग-अलग तरह की होती है। पहाडी क्षेत्र में भूकम्प तथा भूस्खलन, मैदानी क्षेत्र में बाढ़, रेगिस्तान क्षेत्र में सूखा, तटीय क्षेत्र में चक्रवात व तूफान आदि आपदा से प्रभावित होते है। वातावरण में बदलाव ,पन मौसम आपदा, जल सम्बन्धी आपदा तथा भूवैज्ञानिक आपदाओे में भी वृद्धि हो रही है। इन आपदाओं की वृद्धि के कारण इन आपदाओ से सामना करने के लिए हमें प्रशिक्षण, जागरूकता, इन आपदाओं से सामना करने के तरीको की जानकारी, आपदा से प्रभावित क्षेत्र के पुर्नउत्थान के तरीके, धन की उपलब्धता करवाना आदि की जानकारी अधिक आवश्यक है। इन आपदाओं से सामना करने की जिम्मेदारी को निभाने में बहुत सी मुश्किले जैसे जनसंख्या वृद्धि, वातावरण में बदलाव, सभी पक्षों को सूचित करना, आपदा की सही समय पर सूचना, आपदा से बचाव के तरीके आदि ये सभी बाते हम पर दबाव डालती है कि हमें विचारधारा, नीतियों, विधान आदि में बदलाव लाने की जरूरत है।