बाल गंगाधर तिलक के सामाजिक विचार | Original Article
जिस समय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का गठन हुआ, भारत में सामाजिक एवं राजनैतिक सुधारों के मध्य पारस्परिक सामंजस्य का सर्वथा अभाव था। 1895 ई0 में पूना कांग्रेस अधिवेशन के अवसर पर भारतीय राजनीती में पारस्परिक आरोप प्रत्यारोप की स्थिति दृष्टिगोचर होने लगी। इन पारस्परिक मतभेदों के फलस्वरूप कांग्रेस में दो विचारधारा वाले दल सक्रिय हुये। प्रथम विचारधारा के समर्थक सदस्यों ने समाज सुधार का संकल्प किया और दूसरा पक्ष भारत के गौरवमयी अतीत को दृष्टिगत रखते हुये भारतीय जन मानस में मातृभूमि की सेवा की भावना जाग्रत करने का अथक प्रयास किया।