बुन्देलखण्ड कृषि जलवायु प्रदेश (म.प्र.) के ग्रामीण क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन सुभेद्यता का आंकलन | Original Article
जलवायु परिवर्तन न केवल एक प्रमुख वैश्विक पर्यावरणीय समस्या है, बल्कि भारत जैसे विकासशील देश के लिए भी एक बड़ी चिंता का विषय है। जलवायु किसी क्षेत्र विशेष के रहन-सहन, खान-पान, कृषि, अर्थव्यवस्था आदि के निर्धारण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जलवायु परिवर्तन से प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता व उसकी गुणवत्ता में बदलाव आने की सम्भावना बढ़ रही है। जिससे लोगों की आजीविका बुरी तरह प्रभावित हो सकती है। चूँकि जलवायु की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों जैसे कृषि, वानिकी इत्यादि भारत की आबादी के एक बहुत बड़े हिस्से की आजीविका से जुड़े हैं, अतः आने वाले समय में जलवायु परिवर्तन, भारत में आजीविका सम्बन्धी कई चुनौतियां उत्पन्न कर सकता है। कृषि क्षेत्र के जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित होने की संभावना है। भारत की लगभग 68 जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि पर आधारित है। किसी भी क्षेत्र में सभी इकाइयां (परिवार) जलवायु परिवर्तन से समान रूप से प्रभावित नहीं होते, बल्कि सभी पर प्रभावों की मात्रा एवं उनकी संवेदनशीलता और अनुकूलन क्षमता में अन्तर होता है। अध्ययन क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन सुभेद्यता भू-जोत आकार से सम्बंधित है, जैसे - जैसे भू-जोत आकार में वृद्धि होती है, जलवायु परिवर्तन सुभेद्यता में कमी परिलक्षित होती है। IPCC-CVI, जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशीलता को समझने के लिए विशेष रूप से प्रासंगिक है, क्योंकि यह आजीविका प्रदान करने वाले प्रमुख घटकों और इसे प्रभावित करने वाले कारकों दोनों का विश्लेषण करता है। CVI, एक संतुलित भारित औसत दृष्टिकोण (Balanced Weighted Average Approach) का उपयोग करता है। जलवायु परिवर्तन सुभेद्यता, भूमिहीन परिवार, सीमांत जोत धारिता, छोटी जोत धारिता, अर्धमध्यम जोत धारिता और मध्यम एवं बड़ी जोत धारिता वाले परिवारों हेतु क्रमशः 0.615, 0.418, 0.277, 0.232 और 0.162 है।