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आधुनिक हिन्दी साहित्य मे महिलाओ का योगदान | Original Article

अंजलि श्योकंद*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

यदि हम एक आदर्श समाज की स्थापना का स्वप्न साकारकरना चाहते हैं, तो हमे देश की आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करनेवाली नारी को सारे हक-अधिकार, समानता की कसौटी पर देने होगे, क्योंकिसदियों से तमाम वेदनाओएवं वर्जनाओं बंधनों से बंधी नारी आजभी पीड़ित है, शोषित है, असुरक्षित है, उपेक्षित है। इसी नारी ने अपनीअस्मिता एवं अस्तित्व की रक्षार्थ साहित्य-सृजन करके कई मील केपत्थर स्थापित किये है, जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि हिन्दीसाहित्य में नारी का योगदान अद्वितीय है, प्राचीनतम है, प्रभावी है।‘‘स्त्री को लेकर भारतीय साहित्य, दर्शन एवं धर्मशास्त्रों में चिन्तनकी सुदीर्घ परम्परा रही है जहाँ स्त्री की सम्पूर्ण सत्ता को भोग्या, अबला,ललना, कामिनी, रमणी आदि विशेषण के साथ हेय एवं पुरुष सापेक्ष रूपमें चित्रित किया गया है। इसका प्रमुख कारण यह है कि प्राचीन एवंमध्ययुगीन सभी रचयिता एवं टीकाकार पुरुष थे। दूसरे, मातृसत्तात्मकव्यवस्था के अपदस्थ होने के बाद से समाज मेंपितृसत्तात्मक व्यवस्था काविधान रहा है। फलतः स्वाभाविक था कि पुरूष के सन्दर्भ में पुरूष दृष्टिद्वारा स्त्री को देखा जाताहै।