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हिन्दी के दलित आत्मकथाकार | Original Article

Pankaj Kumar Singh*, Rajesh Kumar Niranjan, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

दलित साहित्य में कविता, कहानी, नाटक आदि साहित्यिक विधाओं की तरह आत्मकथाओं का एक विशिष्ट एवं महत्वपूर्ण स्थान है। हिंदी साहित्य में जहाँ आत्मकथा लिखने की परंपरा प्राचीन नहीं है, आधुनिक है, वहीं हिदी आत्मकथा में दलित आत्मकथा की यह परंपरा मराठी में लिखी गई डॉ. अम्बेडकर की आत्मकथा मी कसा झाले (मैं कैसे बना) की प्रेरणा और प्रभाव से हिंदी दलित साहित्य में आत्मकथा लेखन की शुरूआत हुई। प्राचीन समय से लेकर आधुनिक काल तक दलित चेतना किसी-न-किसी रूप में विद्यमान थी। लेकिन इसकी व्यापकता आधुनिक काल में आकर एक साकार रूप धारण करती है, जहाँ पर दलित समाज अत्याचारों के खिलाफ संघर्ष करता हुआ नजर आता है, तथा साथ ही अपने अधिकारों की माँग भी करता है।