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महिलाओं में SHG के माध्यम से उद्यमशीलता का विकास एवं आर्थिक एवं सामाजिक उत्थान | Original Article

राजेन्द्र प्रसाद पटेल*, डॉ. एस. डी. पाण्डेय, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

भारत की 71.2 प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है। इसका लगभग आधा भाग महिलाओ का है। महिलाओं का राष्ट्रीय विकास की गतिविधियों में अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान है। परन्तु, महिलाओं की भूमिका अभी तक परदे के पीछे रही है। यही कारण है कि इन्हें समुचित रूप से मान्यता नहीं मिल पाई है। महिला सशक्तिकरण का मुद्दा केवल भारत का ही विषय नहीं है वरन् विश्व के सभी देशों में यह चिंतनीय मुद्दा है। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 8 मार्च 1975 को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की शुरूआत की गई थी। इसके पश्चात् संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा अनेक विश्व महिला सम्मेलनों का सफलतापूर्वक आयोजन किया गया है। महिला उत्थान व सशक्तिकरण की दिशा में वियना में मानवाधिकारों के विश्व सम्मेलन 1993 में महिला अधिकारों को मानवाधिकार के रूप में स्वीकृति मिली। महिलाओ की स्थिति ही देश के विकास को सूचित करती है। इसलिए इनको सशक्त बनाने की जरूरत है। इन्हें इतना मजबूत बनना होगा कि वे अपने जीवन में व्यक्तिगत व सामाजिक निर्णय लेने में सक्षम हो जाएं। जिन महिलाओं को उनकी वर्तमान आर्थिक स्थिति के कारण कोई वित्तीय सहायता नहीं मिलती है, उन्हें एसएचजी में शामिल होने पर वित्तीय सहायता मिलती है। पहले अपना व्यवसाय शुरू करने के लिए धन प्राप्त करना कठिन था लेकिन अब, के माध्यम से, सूक्ष्म वित्त निधि प्राप्त करना बहुत आसान हो गया है। जो महिलाएं गरीब हैं और अपने जीवन में बहुत सी कठिनाइयों को देखा है, वे अपने बच्चों को एक बेहतर जीवन शैली देने के लिए तैयार हैं और उन्हें पता है कि परिवार के एक सदस्य द्वारा अर्जित आय पर्याप्त नहीं होगी। महिलाएं आर्थिक रूप से अधिक उत्पादक बनने की कोशिश कर रही हैं। दिए गए आंकड़ों से यह भी अनुमान लगाया गया है कि 26 से 35 आयु वर्ग की महिलाएं स्वयं सहायता समूह के व्यवसाय में शामिल होना पसंद करती हैं। यह अनुशंसा की जाती है कि अन्य आयु वर्ग की गरीब महिलाओं को भी स्वयं सहायता समूह में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।