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भारतीय लोकतान्त्रिक प्रणाली का बदलता स्वरूप: एक समाजशास्त्रीय चिन्तन | Original Article

डॉ. सत्येन्द्र सिंह*, डॉ. विपिन कुमार, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

भारत में लोकतंत्र स्थापित करने का एक ही मार्ग है और वह है संविधान के बनाए रास्ते पर चलते हुए हर व्यक्ति, समूह एवं संगठन उसे अपना व्यक्तिगत सामूहिक व पंगठनिक घोषण-पत्र स्वीकार करें। संविधान की सर्वोच्चता को स्वीकार करके ही नागरिक समाज का निर्माण किया जा सकता है। यदि कुछ व्यक्ति समूह या समुदाय अपने अधिकारों के प्रति सचेत है उन्हें प्रासत करने में सक्षम है और बहुसख्ंयक अपनी पिछड़ी पमाजिक, आर्थिक एवं शैक्षणिक पृष्ठभूमि के कारण अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं है उन्हें प्रासत करने का प्रयास नहीं करते हैं तो इन परिस्थितियों में नागरिक समाज का निर्माण नहीं हो सकता। जब मनुष्य स्वयं अपने अच्छे-बुरे का निर्णय कर प्के तथा अच्छे उदकृदेपय को प्रासत करने में सक्षम हो, तो उसका नैतिक विकास हो जाता है। यही उसका सशक्तिकरण है, प्रबुद्धिकरण है। यही भारत में प्रबुद्ध लोकतंत्र के निर्माण की प्रक्रिया का पहला चरण है