शहरी एवं ग्रामीण प्राथमिक विद्यालयों में कार्यरत अध्यापक एवं अध्यापिकाओं के मूल्यों का तुलनात्मक अध्ययन: बिजनौर जनपद के सन्दर्भ में | Original Article
शिक्षा का उद्देष्य अच्छे मानव का विकास करना है। जो व्यक्ति के शरीर, विचारो तथा व्यक्तित्व को इस प्रकार विकसित कर सके कि वह स्वयं के लिए लाभदायक हो तथा अन्य लोगों को भी लाभ पहुंचाए। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और समाज में रहता हुआ ही वह अपने जीवन की विभिन्न क्रिया कलापों को सम्पन्न करता है। ऐसे में वह अपने आस-पास के सामाजिक वातावरण को भी प्रभावित करता है। शिक्षा के माध्यम से हम व्यक्ति के व्यक्तित्व में ऐसे गुणों को विकसित, पुष्पित तथा पल्लवित करें कि वह भी अपने व्यक्तित्व को साथ-साथ सम्पूर्ण मानव जाति, समाज, तथा राष्ट्र का पूर्ण रूप से विकास कर सके। मूल्यपरक शिक्षा का ध्येय व्यक्ति को सहायता प्रदान करना है जिससे कि वह कार्य करने के लिए स्वतंत्र और प्रभावशाली व्यक्तित्व का विकास कर सकें तथा राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय सामाजिक जीवन में सृजनात्मक रूप से भागीदारी निभा सके। मूल्यपरक शिक्षा व्यक्ति को यह क्षमता प्रदान करती है कि वह शीघ्रता से बदलते हुए सामाजिक जीवन का मुकाबला कर सकें तथा वैज्ञानिक आविष्कारों तथा जनसंचार से उत्पन्न समस्याओं के लिए तैयार हो सके और विश्व की समस्याओं के प्रति राष्ट्रीय दृष्टिकोण की अपेक्षा सार्वभौमिक दृष्टिकोण अपना सके। अतः इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर हमनें “प्राथमिक विद्यालय स्तर पर बिजनौर जनपद के शहरी एवं ग्रामीण अध्यापकों के विभिन्न मूल्यों का तुलनात्मक अध्ययन“ विषय को हमने अपने शोध अध्ययन का शीर्षक बनाया है। प्रस्तुत अध्ययन में बिजनौर जनपद के शहरी एवं ग्रामीण प्राथमिक विद्यालयों में कार्यरत अध्यापक एवं अध्यापिकाओं के विभिन्न मूल्यों का तुलनात्मक अध्ययन सर्वेक्षण विधि के माध्यम से किया है, जिसमें उनके समग्र मूल्य, सैद्धांतिक मूल्य, आर्थिक मूल्य, सौन्दर्यात्मक मूल्य, सामाजिक मूल्य, राजनैतिक मूल्य एवं धार्मिक मूल्यों का अध्ययन किया है, जो इस प्रकार है।