दार्शनिक विचार एवं जन शिक्षा सम्बन्धी सिद्धान्तों के प्रतिपादन में पाओलो फ्रेरे का योगदान | Original Article
वैश्विक स्तर पर पाओलो फ्रेरे 19वीं शताब्दी के शिक्षाविदों और दार्शनिकों में अव्वल थे। वे काण्ट, फिट्टे, शैलिंग, हीगल और जॉन डी.वी. आदि दार्शनिकों एवं शिक्षाविदों से अत्यधिक प्रभावित थे। उनका मानना था कि विश्व के मानवों का उत्थान तबतक संभव नही है जब तक उन्हें वास्तविक ज्ञान से परिचित नहीं किया जाये। इसकें लिए वे चाहते थे कि विश्व के समस्तदेशों में एक ऐसा शैक्षिक कार्यक्रम का आयोजन हों जिसमें जन सामान्य के लिए भी शिक्षा की व्यवस्था हो। मनुष्य के कार्यों की परिधि अविभाज्य है तथा उसे आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक तथा धार्मिक आदि विभिन्न वर्गों में विभाजित नहीं किया जा सकता है यही कारण है कि पाओलो फ्रेरे के अर्थशास्त्र में व्यक्तिवाद, समाजवाद तथा नैतिकता का सुन्दर समन्वय देखने को मिलता है। उनका कहा था कि समाज के हर वर्ग यथा किसान, मजदूर, दलित, कर्मकार, युवा वर्ग आदि सभी को जीवन के बहुआयामी पहलुओं की शिक्षा दी जानी चाहिए जिससे समाज के सभी वर्गों को आगे बढने का अवसर प्राप्त हो सके और सभी लोग खुशहाल जिन्दगी जी कर अपने राष्ट्र की प्रगति में योगदान कर सकें।