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पाओलो फ्रेरे के शैक्षिक चिंतन का अध्ययन तथा भारतीय शैक्षिक परिदृश्य में इसकी प्रासांगिकता | Original Article

S. K. Mahto*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

शिक्षा सिर्फ सूचनात्मक ज्ञान, सैद्धांतिक ज्ञान, पुस्तकीय ज्ञान सीखने -सीखाने की अवधाराणा न होकर आजीवन चलने वाली सोद्दश्य प्रक्रिया होकर आजीवन चलने वाली सशक्त माध्यम है। यह व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास कार मानव जीवन की गुणात्मकता को निर्धारित करती है, क्योंकि मनुष्य का सर्वांगीण विकास जितना शिक्षा से जुड़ा है, शायद अन्य किसी पक्ष से नहीं। यही कारण है कि विश्व के सभी चिंतक एवं दार्शनिक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से शिक्षा संदर्भ से जुड़े रहे है। पाओलो फ्रेरे भी पाश्चात्य संदर्भ के शैक्षिक विमर्श से जुड़े ऐसे ही शैक्षिक चिंतक हैं जिनके चिंतन की संदर्भिक उपादेयता भारतीय शैक्षिक में विवेचित वं विश्लेषित की जा सकती है।निर्विद्यालयीकरण की भॉति फ्रेरे मानते हैं कि शिक्षण संस्था से बाहर भी शैक्षिक प्रक्रिया संभव है। वह शिक्षा प्रणाली के माध्यम से छात्रों में आलोचनात्मक चेतना विकसित कर सामाजिक न्याय केंद्रित शोषणयुक्त पूर्ण मानुषीकरण जैसा परिवर्तन क्रांति के द्वारा लाने पर बल देते है। पाओलो फ्रेरे सर्वाधिक समस्या उठाउ शिक्षा, पाठ्यक्रम लचीलापन, स्वतः स्फूर्ति द्वारा सीखना, शिक्षक को अभिभावकत्व बोध बनाने, शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को मनोवैज्ञानिकता से समृद्ध करने, बालक को वस्तु की जगह मानव इकाई मानने, सीखने को कृत्रिमता के भ्रम से यथार्थ के धरातल पर लाने, अनौपचारिक शैक्षिक गतिविधियों को शैक्षिक रूप से अधिक प्रभावी बनाने, शिक्षा के माध्यम से सामाजिक रूपान्तरण करने आदि के प्रयासों में लगते हैं।