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राम भक्तिकाव्य तथा उसके कवियों का अध्ययन | Original Article

Neha Rao*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

भक्ति परम्परा का विकास प्राचीनकाल में ही हो गया था। राम भक्ति के कवियों ने अपनी मधुर वाणी से जनता के तमाम स्तरों को राममय कर दिया। राम भक्त कवियों ने सभी धर्मों में समन्वय स्थापित किया। प्रस्तुत शोध पत्र में राम भक्ति भावना और साहित्य पर चर्चा की गई है। यद्यपि रामकाव्य का आधार संस्कृत साहित्य में उपलब्ध राम-काव्य और नाटक रहें हैं। हिन्दी में राम भक्ति साहित्य का वास्तविक सूत्रपात भक्ति काल से हुआ। यद्यपि वीरगाथा काल में भी राम भक्ति संबंधी कतिपय अंश मिलते हैं तथापि इसका विस्तृत और वास्तविक प्रारंभ रामानुजाचार्य तथा रामानंद से हुआ। इस परंपरा के सर्वश्रेष्ठ भक्त कवि गोस्वामी तुलसीदास हुए जिन्होंने भक्ति काल के श्रेष्ठतम प्रबंधकाव्य ‘रामचरितमानस’ के माध्यम से वाल्मीकि के पश्चात राम भक्ति साहित्य में एक नया कीर्तिमान स्थापित किया। केशवदास, सेनापति आदि ने भी अपनी कृतियों से इस भक्ति धारा को ऐश्वर्य प्रदान किया। राम भक्तिधारा के अंतर्गत मर्यादावादिता, आदर्शवादिता, समन्वय की भावना तथा उत्थान का स्वर प्रमुख रहा और राम भक्ति धारा के कवियों ने साहित्य की विविध काव्य शैलियों का प्रयोग कर इस धारा की वृद्धि की। इस साहित्य ने समाज को बहुत कुछ दिया और परमार्थ, मानवतावाद, एकता तथा लोक मंगल की भावना आदि से मानव समाज को उपकृत किया।