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बिरहोर जनजाति के कल्याणार्थ कतिपय सरकारी कार्यक्रमों का एक ऐतिहासिक विवेचन | Original Article

Arvind Kumar Upadhyay*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

बिरहोर आदिवासी जंगल में रहने वाले भारत की एक लुप्तप्राय होनेवाली जनजाति है। भारत के उड़ीसा, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और झारखंड राज्य में यह जनजाति प्रमुख रूप से पाये जाते हैं। झारखंड राज्य के हजारीबाग, गिरीडिह, राँची, लोहरदगा, पलामू, गढ़वा, धनबाद और सिंहभूम जिले में इन्हें देखा जा सकता है। बिरहोरों की मान्यता है कि वे और खरवार समुदाय दोनो सूर्य से इस धरती पर आये हैं। मुंडारी भाषा में बिरहोर का अर्थ होता है, लकड़ी काटने वाला या लकड़हारा। बिरहोर का एक अर्थ जंगलों का मालिक (बादशाह) भी होता है। पहाड़ों और जंगलों में एकांत जीवन व्यतीत करने वाले ये प्राचीन जनजाति हैं। बिरहोरों को दो वर्गों में बाँटा गया है। उथलू अर्थात घुमक्कड़ और जगही अर्थात् अधिवासी। उथलू बिरहोर हमेशा अपना स्थान बदलते रहते हैं। जब कभी इनके रहने के स्थान में खाद्य पदार्थों की कमी हो जाती है ये उस स्थान को छोड़कर जंगल में अन्यत्र प्रस्थान कर जाते हैं। दूसरी ओर जगही बिरहोर स्थायी रूप से निवास करने वाले होते हैं। ये जंगलों के नजदीक स्थायी रूप से भवन या मकान में रहते हैं। इनमें से अधिकतर भूमिहीन होते हैं और शिकार करके तथा रस्सियाँ बेचकर अपनी आजीविका चलाते हैं। सामान्यतया बिरहोर जनजाति छोटे-छोटे समुदायों में रिहायशी क्षेत्रों से सुदूर वन एवं जंगलों में रहते हैं। जनजातियों का यह समुदाय विकास के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और शैक्षणिक मापदंडो के निम्नतम पायदान पर हैं और लुप्तप्राय होने की स्थिति में है। इनके उत्थान, संरक्षण और कल्याणार्थ सरकार द्वारा समय-समय पर अनेक योजनाओं को संचालित भी किए गए जिनके परिणाम कमोबेश सार्थक रहे हैं। प्रस्तुत शोध-आलेख में बिरहोरों के कल्याणर्थ संचालित कतिपय सरकारी कार्यक्रमों को रेखांकित किया गया है।