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अजमेर-मेरवाड़ा में क्रांतिकारियों की गतिविधियाँ | Original Article

Reeta Rani*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

अजमेर के अन्दर 19वीं सदी के आखिरी समय में पढ़े-लिखे मध्यम वर्ग में राजनैतिक जागृति पैदा होने लगी थी। इस वक्त आर्य समाज ही एक इस तरह का आम संगठन था, जिसकी साप्ताहिक बैठकों में पढ़े-लिखे नवयुवक शामिल होकर सामाजिक विषयों से संबंधित विचार विमर्श करते थे। यह राजनैतिक जागृति एक छोटे समुदाय तक ही सीमित रह गई थी, जो इस वक्त जन संग्राम का बड़ा रूप नहीं ले पाई थी। अजमेर को एक केन्द्र बिन्दु बनाकर स्वामी दयानन्द सरस्वती जी ने उच्च वर्ग में क्षेत्रीय प्रवृत्ति को पैदा करने के लिए अपनी प्रचार शैली को कठोर बनाया। यहाँ की भौगोलिक तथा प्राकृतिक विशषेताओं, बड़े निर्जन मरूस्थलीय, रेत के बड़े-बड़े टीले, अरावली पर्वत की श्रेणियाँ व घने जंगलों तथा क्रांतिकारियों की गतिविधियों को बढ़ाने में मददगार रहे। 20वीं सदी के अंदर आन्तेड़ की पहाड़ियों के तल में वहाँ के नवयुवकों द्वारा अंग्रेजी विरोधी गतिविधियों के संचालन के लिए संगठन बनाए गए। देशी रियासतों में अंग्रेज अधिकारियों के द्वारा राजशाही के विरोध में अजमेर के अंदर आंदोलन किया गया। राष्ट्र में सांम्प्रदायिक दंगों की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप हिन्दुओं के पुनरूत्थान के लिए शुद्धि संगठन जैसे क्रांतिकारी प्रयासों की कोशिश की गई।