ग्रामीण भारत में सामाजिक स्तरीकरण और गतिशीलता के बदलते प्रतिमान | Original Article
ग्रामीण संदर्भ में सामाजिक स्तरीकरण के बदलते प्रतिमानों के बारे में मध्यक्षेत्रीय सामान्वीयकरण एक कठिन कार्य है। आजकल समूह और व्यक्ति दोनो प्रकार्यात्मक प्रभावशाली भूमिका निभा रहे है। इसके नाते सामाजिक स्तरीकरण के प्रतिमान भी बदल हैं। गाँवों में जाति आज भी सामाजिक स्तरीकरण की एक मुख्य इकाई है। परन्तु अन्य कारक भी विभेदीकरण लाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं। गाँवों में आजकल जाति के नाम से व्यक्ति को सामाजिक संस्तरण में स्थान नहीं मिल रहा है बल्कि उसकी सामाजिक, आर्थिक स्थिति इसमें महत्वपूर्ण हो गई है। गाँवों के वे लोग जो अपनी आर्थिक स्थिति को खेती, रोजगार, शिक्षा आदि के माध्यम से अच्छा बना लिये है और जिनका बाह्य जगत से सम्पर्क बढ़ गया है ऐसे लोगों की सामाजिक प्रस्थिति बदली है और सामाजिक स्तरीकरण में इनके वर्ग की स्थिति उँची हुई है भले ही जाति की स्थिति यथावत हो। इसी क्रम में उच्च जाति के व्यक्ति का वर्ग नीचाँ हो सकता है और निम्न जाति के व्यक्ति का वर्ग ऊँचा हो सकता है।