किरातार्जुनीयम् महाकाव्य में दुर्जन एवं सज्जन आचरण विवेचन | Original Article
किरातार्जुनीयम् संस्कृत के सुप्रसिद्ध महाकाव्यों में से अन्यतम है जो छठी शताब्दी या उसके पहले लिखा गया है। इसको महाकाव्यों की ‘बृहत्त्रयी’ में प्रथम स्थान प्राप्त है। महाकवि कालिदास की कृतियों के अनन्तर संस्कृत साहित्य में भारवि के किरातार्जुनीयम् का ही स्थान है। बृहत्त्रयी के दूसरे महाकाव्य ‘शिशुपालवधम्’ तथा ‘नैषधीयचरितम्’ हैं। किरातार्जुनीयम् राजनीति प्रधान महाकाव्य है। राजनीति वीररस से अछूती नही हो सकती है। फलतः इसका प्रधान रस ‘वीर’ है। किरातार्जुनीयम् प्रसिद्ध प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में से एक है। इसे एक उत्कृष्ट काव्य रचना माना जाता है। इसके रचनाकार महाकवि भारवि हैं, जिनका समय छठी-सातवीं शताब्दी माना जाता है। यह रचना ‘किरात’ रूपधारी शिव एवं पांडु पुत्र अर्जुन के बीच हुए धनुर्युद्ध तथा वार्तालाप पर आधारित है। ‘महाभारत’ में वर्णित किरातवेशी शिव के साथ अर्जुन के युद्ध की लघु कथा को आधार बनाकर कवि ने राजनीति, धर्मनीति, कूटनीति, समाजनीति, युद्धनीति, जनजीवन आदि का मनोरम वर्णन किया है। यह काव्य विभिन्न रसों से ओतप्रोत है।