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पूर्व मध्यकाल में हिन्दू और मुस्लिम संस्कृतियों का मेल | Original Article

Shriphal Meena*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

सर्वप्रथम हमें सामाजिक और सांस्कृतिक अवधारणा की स्थिति को समझने के लिये सम्पूर्ण पूर्व मध्यकालीन परिवेश को समझने की बेहद आवश्यकता है। वैसे सामाजिकता का अर्थ है समाज से जुड़ाव और सभ्यता की पहचान। उदाहरण के रूप में - वेश-भूषा, ऐश्वर्य, सज्जा, भवन-नगर, मार्ग-वाहन, गति-प्रगति आदि से सम्बन्धित संदर्भ की व्यापकता। इस प्रकार समाजिकता -सभ्यता को द्योतित करता है। इसी प्रकार संस्कृति का शब्दिक अर्थ सम् और कृति की अभिव्यक्ति है। इस शब्द का निर्माण सम् और कृति-इन दो शब्दों से मिलकर होता है। इस प्रकार यह शब्द सम्यक् कृति, महान् साधना और महान् सर्जना से अभिव्यक्ति पाता है। इस शब्द का पर्याय है- पूर्णत दोषमुक्त किया हुआ सन्दर्भ। इसी क्रम में डा. डी. एन. मजुमदार का कहना है-सामाजिकता सामाजिक तथा वाह्य गुणों का द्योतक है- जबकि संस्कृति के अन्तर्गत मनुष्यों की रीति-नीति, लोक-विश्वास, आदर्श, कलाएं तथा उपलब्ध समस्त कौशल तथा योग्यताओं को लिया जा सकता हैं।