सामाजिक परिवर्तन में शिक्षा और स्त्री शिक्षा की भूमिका | Original Article
व्यक्ति स्वभाव से ही एक गतिशीलप्राणी है। अतः मानव समाज कभी भी स्थिर नही रहता उसमें सदैव परिवर्तन हुआ करता है। परिवर्तन संसार का नियम है। परिवर्तन किसी भी वस्तु, विषय, विचार, व्यवहार अथवा आदत में समय के अन्तराल से उत्पन्न हुई भिन्नता को कहते है। परिवर्तन एक बहुत बड़ी अवधारणा है और यह जैविक, भौतिक तथा सामाजिक तीनो जगत में पाई जाती है किन्तु जब परिवर्तन शब्द के पहले सामाजिक शब्द जोड़कर उसे सामाजिक परिवर्तन बना दिया जाता है तो निश्चित ही उसका अर्थ सीमित हो जाता है परिवहन निश्चित है क्योकि यह प्रकृति का नियम है। संसार में कोई भी पदार्थ नही जो स्थिर रहता है उसमें कुछ न कुछ परिवर्तन सदैव होता रहता है। स्थिर समाज की कल्पना करना आज के युग मे संभव नहीं है। समाज में सामंजस्य स्थापित करने के लिए परिवर्तन आवश्यक है। मैकाईवर एवं पेज का कहना है कि समाज परिवर्तनशील तथा गत्यात्मक दोनों है। वास्तव में समाज से संबंधित विभिन्न पहलुओं में होने वाले परिवर्तन को सामाजिक परिवर्तन कहते है। सामाजिक परिवर्तन एक स्वभाविक प्रक्रिया है यदि हम समाज में सामंजस्य और निरंतरता को बनाये रखना चाहते है तो हमें यथा स्थिति अपने व्यवहार को परिवर्तनशील बनाना ही होगा। यदि ऐसा न होता तो मानव समाज की इतनी प्रगति संभव नहीं होती। निश्चित और निरंतर परिवर्तन मानव समाज की विशेषता है। सामाजिक परिवर्तन का विरोध होता है क्योंकि समाज में रूढ़ीवादी तत्व प्राचीनता से ही चिपटे रहना पसंद करते है। स्त्रियों की शिक्षा स्वतंत्रता व समान अधिकार की भावना, स्त्रियों का आत्मनिर्भर होना, यौन शोषण पर रोक, भ्रूण हत्या की समाप्ति और ऐसे अनेक सामाजिक कुरूतियाँ है जिसमें परिवर्तन को आज भी समाज के कुछ तत्व स्वीकार नहीं कर पाते है। शिक्षा ने समाज में फैले इन कुरूतियों के परिणाम को बताने का प्रयास किया है लोगों के बीच चेतना जागृत करने का प्रयास किया है। वही स्त्री शिक्षा परिवार की शिक्षा है जिस परिवार की स्त्री शिक्षित है उस परिवार की सोच, विचार, रहन-सहन सभी में बदलाव नजर आते है वे परिवार अपने रूढ़ीवादी विचारों को नकारते है और मानवीयता, नैतिकता और सामाजिक सहिसुन्नता के आधार पर सामाजिक संबंधो का निर्माण करता है। प्रत्येक कार्य के महत्व को समझते हुए उसे सम्पन्न करने का प्रयास करता है। समाज की जड़ता को समाप्त करने के शिक्षा तथा स्त्री शिक्षा की अतुलनीय योगदान है। इसी का परिणाम है कि आज समाज के वे परम्परागत कोढ़ जो समाज की स्वच्छ संरचना को समाप्त कर रहा था आज उन्नमूलन की अवस्था में है।