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भारत में मलिन बस्तियों के दुष्प्रभावों का भौगोलिक अध्ययन | Original Article

Vijay Kumar Verma*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

प्रस्तुत शोध पत्र भारत में मलिन बस्तियों के दुष्प्रभावों के भौगोलिक अध्ययन से सम्बंधित है। भारत विश्व के सबसे विशालतम देशों में से एक है। यह अपने आप में एक अजूबा है। जहां एक तरफ उत्तर में हिमालयी क्षेत्र में अत्याधिक बर्फबारी होती है। वहीं मैदानी इलाकों में तापमान काफी गर्म होता है। जबकि समुद्री इलाकों में तापमान काफी हद तक एक समान रहता है। एक देश के अन्दर इतनी सारी अलग-अलग जलवायु विविधता अपने आप में अदभुत हैं। जहाँ तक भारत जैसे विकासशील देश का प्रश्न है, गंदी बस्ती की समस्या यहां अत्यधिक गंभीर है। लोगों को बुरी आर्थिक दशा के कारण यह बढ़ती हुई जनसंख्या, उन्नत तकनीकी और धीमी प्रगति से होने वाले औधोगिकीकरण का ही परिणाम है। भारत में गंदी बस्ती का उदय कब हुआ, इसका निश्चित समय नहीं बतलाया जा सकता है। लेकिन जैसे-जैसे समय बिताता जा रहा है नई-नई गंदी बस्तीयों का विस्तार हो रहा है। इस प्रकार गन्दी बस्तियाँ प्रायः सभी बड़े नगरों में विकसित हुई है। नगरीकरण और औधोगिकीकरण ने जहां व्यक्तियों को विज्ञान, तकनीकी ज्ञान, शिक्षा और एक अच्छी वैज्ञानिक समझ दी है वहीं करोड़ों व्यक्तियों को नारकीय जीवन व्यतीत करने के लिए विवश किया है। इस नारकीय जीवन को गंदी बस्तियों में देखा जा सकता है। एक छोटी-सी झोपड़ी, कच्चे मकान अथवा एक कोठरी में 10 से 15 व्यक्ति तक रहते हैं। जल निकासी का कोई प्रबंध नहीं होता। कूड़े, कचरे का यहां ढेर लगा रहता है। शौच की कोई व्यवस्था नहीं होती। बैठने के लिए इनके पास खुला स्थान नहीं है। तंग संकरी मलिन बस्तियाँ जहां जीवन कम और बीमारियां अधिक हैं। ये वे स्थान हैं जहां सामाजिक आदर्श, मुल्य, नैतिकता, सहिष्णुता आदि के दर्शन होते हैं। ये अपनी आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए सब कुछ करने के लिए तैयार रहते हैं अतः उपरोक्त शोध पत्र में भारत की मलिन बस्तियों की प्रमुख समस्याओं, दुष्परिणाम, समाधान के उपायों एवं स्वच्छ बेहतर जीवन स्तर के उपायों का अध्ययन किया गया है।