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विभिन्न काल एवं परिस्तिथियों में नारी अस्मिता | Original Article

Savita .*, Govind Dwivedi, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

अस्मिता व्यक्ति के व्यक्तित्व की विशिाष्ट एवं विलक्षण पहचान है जो उसके समाज की विलक्षण ऐतिहासिकता एवं वास्तविक अथवा मिथकीय अतीत से जोड़ती है। नारी एक ऐसी सम्पूर्ण मानवीय इयत्ता है जो, पुरूष से शारीरिक भिन्नता लिए असीम संभावनाओं का पूँजीभूत रूप है जो अपनी आन्तरिकता, वैयक्तिकता और स्वतंत्रता द्वारा जीवन के उच्चतम् सोपानों को स्पर्श कर सकती है। नारी अस्मिता अपने स्थूल रूप में नारी की वैयक्तिकता, व्यक्ति या मनुष्य के रूप में उसकी गरिमा, प्रतिष्ठा तथा पहचान ही है जिसमें अपने जीवन पर खुद उसकी सत्ता होती है। 20वीं सदी में भूमण्डलीकरण, विज्ञापनवाद, बाजारवाद, उपभोक्तावाद, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक स्थितियों के कारण भारतीय समाज में नारी अस्मिता के लिए बल मिला।